Saturday, October 30, 2010

History of Sikh's Gurus












Tuesday, October 26, 2010

ਅੱਖਾ ਰੋਣ ਲਗਿਯਾ ਨੇ

ਦਿਲ ਭਰ ਆਯਾ ਏ, ਤੇ ਅੱਖਾ ਰੋਣ ਲਗਿਯਾ ਨੇ ,
ਕਿਵੇ ਦੱਸਾ ਕੀ ਦੁਨਿਯਾ ਚ ਕੀਨਿਯਾ ਠਗਿਯਾਂ ਨੇ.....
ਹੁਣ ਤਾ ਕਿਸੇ ਤੇ ਯਕੀਨ ਵੀ ਨਹੀ ਹੁੰਦਾ,
ਯਾਰਿਯਾਂ ਨਾਲੋ ਤਾ ਦੁਸ਼੍ਮਨਿਯਾਂ ਚੰਗੀਯਾਂ ਨੇ.....

आ के प्यार दे कोई

बस मुहब्बत की मुझे ज़रूरत है
बेइंतहाँ आ के प्यार दे कोई

फिर दिल से रूख़सती को न कहना
चाहे सीने में खंज़र उतार दे कोई

माना तन्हा सही पर आज भी मैं जिंदा हूँ
आ के करीने से मुझको सँवार दे कोई

मेरे दिल की ज़मीं में आज भी गुलाब पलते हैं
खिलेगें, शर्त पहले प्यार की फुहार दे कोई

दिलों से खेलने को तूने अपना शौक़ कहा था
हैं दुआ ईश्क़ में तुझको करारी हार दे कोई

सिवाय बेवफ़ाई उम्र भर तूने दिया क्या
क्यों तेरी याद में जीवन गुज़ार दे कोई

मुझसे ज़्यादा भी कोई और तुम्हें चाहता है
ख़ुदा ये सुनने से पहले ही मार दे कोई

बहकेगें क़दम तेरे, संभालेगा मेरा कंधा
कहोगी उस दिन कि मुझ-सा यार दे कोई

उन्होंने अब तलक मुझको कभी क़ाबिल नहीं समझा
मेरे कंधों का उनको इक दिन आधा तो भार दे कोई

अनजाने में कई काम अधूरे छूटे
आज एक ज़िंदगी उधार दे कोई

है ख़्वाहिश आख़िरी साँस मेरी अटकी हो हलक़ में
वो मुझको चाहती थी ला के ऐसा तार दे कोई

Saturday, October 23, 2010

भ्रूण हत्या की मज़बूरी

कन्या भ्रूण हत्या के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है और सुना है . मेरी राय भी ऐसी ही थी इस बारे में पढ़ कर बातें कर के जो एक बात सामने आती है या जिसका हम निष्कर्ष निकलते है वो ये की कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोग ही ऐसा घिनौना कृत्य कर रहे है जो सिर्फ वंश वृद्धि का सोचते है लड़के की चाह रखते है …मगर ऐसा नहीं है ये सोच सिर्फ लड़के की चाह या वंश वृद्धि तक की बात नहीं बात की हकीकत कुछ और है दुःख लड़की पैदा होने का नहीं है सवाल वंश का भी नहीं… दुःख उस बात का है जो एक औरत किसी से कह नहीं पाती वो अपने जख्म किसी को दिखा नहीं पाती अत्याचार तो औरतों पर शुरू से हुए है कहीं इसका विरुद्ध हुआ कहीं आवाज का दमन ये सब वो सह लेती है नियति का लिखा सोच कर
उसकी आवाज का दमन का सिलसिला घर से शुरू होता है समाज में पहुँचता है और एक दिन घर में दम तौड़ देता है ये तो सब ही जानते है मगर वक़्त बदला घर परिवार, समाज में औरतों की स्थिति बदली लोगो ने कहा स्त्री को वो हक सम्मान मिलना चाहिए जिसकी वो हकदार है कुछ लोगो ने औरतों की आगे की सुध ली और बहस का मुद्दा बना दिया औरतों को पुरुषों के बराबर खड़ा कर के हर तरफ इसी विषय की जंग छिड़ी है औरत भी पुरुषों के बराबर है उसके भी वो ही अधिकार है ठीक है हम को अधिकार मिले ठीक है हम पुरुषों से कंधे से कन्धा मिला कर चल रहे है मगर क्या हम को सही में जो अधिकार मिलने चाहिए थे मिल गए है क्या सच में हम पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रहे है … जवाब हाँ है??? न है??? या क्न्फुयजन है की वास्तव में एक औरत की स्थिति क्या है कहीं तो आजादी के नाम पर लड़कियां को बेहयाई दे दी गयी है तो कहीं पर उसको पुरुषो के सामान बनाने में उसकी स्त्री स्वरूप कोमलता को मार दिया जा रहा है लड़कियां आज भी उसी आदमी की मानसिकता के अनुसार ही चल रही है उसकी अपनी एक सोच अपने आप का निर्माण उसको खुद करने दो न क्यूँ उसकी सोच को प्रभावित किया जा रहा है लड़कियां पहले भी पुरुषों के लिए निचले दर्जे की थी और आज भी है उसका खुद का अस्तित्व पुरुषो पर निर्भर करता था करता है एक औरत का शोषण घर से शुरू हुआ और प्लेग की तरह सारे समाज में फैल गया किसी ने इस का विरुद्ध ही नहीं किया अब विरुद्ध करो तो खून में रच गयी आदत बोलने से तो जाने से रही एक औरत ने जन्म से ही संघर्ष शुरू कर दिए हों और वो संघर्ष मौत तक साथ रहे वो औरत कैसे चाह सकती है की उसकी कोख से फिर न खत्म होने वाला संघर्ष शुरू हो वो डरती है की जब पहली बार उसे किसी पराये के छूने का मतलब पता हुआ था वो मेरी बच्ची के साथ न हो वो डरती है जो चचेरा या ममेरा भाई मुझे अकेले मे देखते ही घिनौने रूप में आ जाता है वो मेरी बच्ची न देखे जब पहली बार वो बच्ची से नवयोवना हुई उस वक़्त सब पडोसी अंकल की दृष्टि इतनी चुभने वाली हो गयी थी घर से निकलने में शर्म नहीं वो पल मरने जैसा होता था तो क्यूँ वो पल पल का मरना वो सहे जब पब्लिक ट्रांसपोट से सफर शुरू हुआ तो हर पल खुद को न जाने कितने तह में छुपाने का दिल किया किसी ऐसे वीराने में जाने का दिल हुआ जहाँ कोई पुरुष न हो उसकी छाया न हो फिर कैसे अपनी कोख से फिर से उस डर को पैदा करूँ ,
कहते है पति का घर ही अपना होता है जहाँ से बस उठेगी तो उसकी अर्थी मगर यहाँ भी संघर्ष शुरू सभ्यता संस्कार आदर अपनापन मिठाश ये सब औरत के लिए ही बनाये गए है इन बातों से पुरुष का कोई लेना देना नही ऊँचा मत बोलो सभ्य दिखो संस्कार ऐसे की गलत बात पर भी चुप रहो आदर ऐसा की अपमान का घूंट पी कर भी इज्ज़त करो ये जिल्लत सहो और सहते रहो जब तक की अर्थी उठती नहीं इस घर से “घर से बहार ऐसे देवर से मिलो जो भाभी तो कहेंगे मगर नियत साफ बता देगी की वो चाहता क्या है” ऐसी दुनियां में उस को ला कर फिर से वही सब या उससे भी भयानक देखने के लिए कैसे छोड़ दे
आज समझी हू क्यूँ जब घर पहुँचने में देर होने में माँ मुझे चिंतित मिलती थी क्यूँ वो इतनी नसीहते देती थी वो तो डर डर के जीती रही और भी न जाने कितनी माये डर से समझोता करती है मगर जो माँ अपने डर पे काबू नहीं कर पाती वो ऐसा कदम उठती है मैं उसको कमजोर नहीं कहूँगी न ही पापन पता नहीं उसने इतना सब सहा है या उससे ज्यादा ये तो वो ही जान सकती है मगर मैं सोचती हूँ हम को जो आजादी दी जा रही है उस आजादी में हम को उन पुरुषों से सुरक्षा भी मिल जाये सुरक्षा इस बात की नहीं की एक पुरुष द्वारा दुसरे पुरुष से बचाया जाये सुरक्षा इस बात की की वो अपनी नियत अपना नजरिया अपनी सोच बदले हम को बराबरी का नहीं सम्मान का अधिकार दे दो हमको कंधे से कन्धा मिला कर नहीं हम को अपने ऊँचाइयों को अपने आप छूने दे दो हम को आप से नजरों की सुरक्षा चाहिए जिसमे हम को लड़की होने पर मरने जैसा न अनुभव करना पड़े हमको अपनी बातों से सुरक्षा दे दो जहाँ बहन का मतलब बहन हो जहाँ भाभी का मतलब भाभी हो जहाँ माँ का मतलब माँ हो, हम को सम्मान की सुरक्षा दे दो जहाँ हम बसों में सडको में घर के बहार कहीं भी अपने लड़की होने पर अपमान न महसूस हो ऐसी सुरक्षा दे दो अगर हम लड़कियों को ये सम्मान ये सुरक्षा समाज के हर शख्स हर अपने परायों से मिल जाएगी तब कोई भी लड़की का यूँ हत्या नहीं की जाएगी न किसी माँ को डर के साये में जीना होगा ना फिर कभी किसी के कोख में किसी कन्या की हत्या की जाएगी और न इस विषय में कुछ लिखा जायेगा न पढ़ा जायेगा ..
जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलते तब तक लड़कियां समाज में ही नहीं माँ की कोख में भी सुरक्षित नहीं रहेगी.................

Sunday, October 10, 2010

कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है.......

इक रोज़ सुबह उठा तो, सोचने लगा मै की आज कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है,
फिर दिन गुज़रा, रात हुयी तो सोचने लगा मै की कल कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है,
फिर दिन गुज़रे, और महीने तो सोचने लगा मै की कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है,
जिंदगी यही है समझ आ गया मुझे की "कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है,"

अमरदीप सिंह

Friday, October 8, 2010

सवाल ज़िन्दगी के........

पन्नों में जल रहे थे कुछ साल ज़िन्दगी के ,
धुआँ धुआँ से हो गये कई ख्याल ज़िन्दगी के ।

एक तेरी याद है बस जो दिल बेहलाती है ,
वरना सताते हैं हमे कई सवाल ज़िन्दगी के ।

वफ़ा मोहब्बत में ,दोस्ती में बेवफ़ाई ,
होते है कई तजूर्बें बेमिसाल ज़िन्दगी के ।

हंसते चेहरे जलते पावं , नदियाँ चिडियाँ गावं ,
हर पल नजर आते हैं कमाल ज़िन्दगी के ।

शाम से सुबह ,सुबह से रात का सफ़र ,
मालिक हैं हम ऎसी बेहाल ज़िन्दगी के ।

Saturday, October 2, 2010

तेजी से गायकी की बुलंदियों को छूने वाले पंजाबी गायक सतिंदर सरताज ने आखिर ली चैन की सांस...

गायकी में जहाँ गायकों को अपना नाम बनाने व गायकी की बुलंदियों को छूने में बहुत वक़्त लग जाता वही सतिंदर सरताज ने बहुत ही कम समय में पंजाबी गायकी की जिस बुलंदी को छुआ, वह बहुत ही काबिल-ए-तारीफ है। जहा एक तरफ पंजाबी गायक आसमान की बुलंदियों को छू रहा था। वही दूसरी तरफ पता चला की गायक ने अपने गीत में किसी शायर की गजलो को बिना उसकी इजाज़त के और उसे अपना कह कर गया है। यह बात बहुत ही तेजी से आग की तरफ चारो तरफ फ़ैल रही थी। पता चला की गायक सरताज के मन कुन तो मौला गीत में फिरोजपुर के शायर तिरलोक सिंह जज लिखी हुयी ग़ज़लों में से कुछ पंक्तिया बिना उनकी इजाजत ली और गजल की पंक्तियों में अदला-बदली करने के साथ साथ, गीत में उसे अपना कहा।

कहा जाता है की किसी शायर या कवी की रचित पंक्तियों में उसके दिल और दिमाग के अलावा उसकी रूह भी शामिल होती है। उनके द्वारा रचित पंक्तियों में उनकी जान का कुछ हिस्सा होता है और अगर कोई उनकी रचित गज़लों से या कविताओ से खिलवाड़ करे या उसका मजाक उडाये तो वह उनकी रूह को ठेस पहुँचाने के बराबर या कुछ उससे भी ज्यादा होता है।

तिरलोक सिंह जज को जब इस बारे में पता चला तो पहले तो शायद उन्होंने इस अनदेखा कर दिया, पर बाद में आग ज्यादा भड़कने व् कुछ सामाजिक लांछनो की वजह से उनका चुप्पी साधना संभव ना था। फिर इस बारे में जज साहिब की तरफ से ठोस कारवाही की गयी। जज साहिब ने कोई भी ठोस कदम किसी लालच या गायक को निचा दिखाने के लिए नहीं बल्कि इस विवाद को ख़तम करने के लिए उठाया। वह चाहते थे की कोई भी गायक भविष्य में आगे से ऐसा ना करे और तेजी से बढ़ रहे इस विवाद को भी ख़तम करना था।
अंत परिणाम स्वरूप फिरोजपुर में ही हुयी बैठक में जिसमे मशहूर पंजाबी गायक सतिंदर सरताज, शायर तिरलोक सिंह जज और कुछ हस्तियाँ मौजूद रही। जिसमे गायक सतिंदर सरताज जो की बहुत ही अच्छे व्यक्तित्व के है, बड़े ही अच्छे ढंग से इस विवाद को ख़तम करते हुए जज साहब से अपने से हुयी गलती के लिए क्षमा मांगते हुए इस विवाद को ख़तम किया और चैन की सांस ली...
पत्रकार

अमरदीप सिंह