Thursday, May 26, 2011

ये 'इश्क' है क्या , जरा कोई मुझको समझाए....................

ये 'इश्क' है क्या , जरा कोई मुझको समझाए,
करके 'इश्क,' हीरा-रांझा और लैला-मजनू जैसे क्यों या एक हो पाए,

है ये कैसा ज़ख़्म जो भरने के बाद भी दर्द पहुंचाए,
मिले तो जन्नत और छोड़े तो जहन्नुम का एहसास दिलाये,

इक 'इश्क' की खातिर सारी दुनिया बुरी बन जाये,
क्यों आज भी 'इश्क' को बदनाम निगाहों से देखा जाता है,

वो दुनिया कहा है जहा 'इश्क' सबका अमर जो जाये,
कहता है "अमरदीप', समझे और औरो को भी समझाए,

इश्क करना है तो पत्थर से करो, जो कभी न कभी मोम बन जाये,
क्योकि इंसान वो चीज़ है जो इश्क करने के बाद पत्थर बन जाये,

ये 'इश्क' है क्या , जरा कोई मुझको समझाए....................

Friday, May 13, 2011

Bhule hai wo kuchh is tarah se..........



Bhule hai wo kuchh is tarah se hume,
ab to sirf intezaar karna naseeb ho gya,

Na jane kaun si khata ho gyi humse,
ya ab koi aur unke kareeb ho gya......