Saturday, July 21, 2012

क्या मेरा अंजाम है आया....

मेरा नसीब भी तब किसी काम ना आया, 
जब कुछ कर दिखाने के मुकाम पे मै आया.. 
खुदा से मांगता था जो मै अक्सर,
जवाब में कभी कोई पैगाम ना आया...
देखता तो वो भी था कही से मुझे,
मेरी बदनसीबी का वो तोहफा भी बेनाम आया..
ऐ खुदा, तुही बता दे मुझे क्या करू मै,
क्या मेरा हशर, क्या मेरा अंजाम है आया....

>>>>अमरदीप<<<<

Friday, July 20, 2012

अंत "अमरदीप" सुलगता गया....

जाल बुनना तुने शुरू किया, और फंसता मै चला गया..
गुनाह हर बार तुने किया, और गुनाहगार मै बनता गया..
कांटे बोये रास्तो पर तुने, आँख बंद कर मै चलता गया..
कांच तुने तोड़े जाकर सबके , टुकडो में मै बंटता गया..
चिराग बुझाये तुने अक्सर, अंधेरो में मै भटकता गया..
खेला तुने कई दिलों से अब तक, दर्द से मै बिलखता गया..
आखिर घर किसी और का जला, अंत "अमरदीप" सुलगता गया.. 

>>>>अमरदीप<<<<

Tuesday, July 17, 2012

खुदा भी फिर झूठा लगने लगता है...


जानना तो मै भी चाहता था अपनी कमजोरियां,
पास आकर फिर क्यों बढ़ने लगती है दूरियां..
सब कुछ रूठा-रूठा सा लगने लगता है,
खुदा भी फिर झूठा लगने लगता है...
जिन गलियों में हम अक्सर किसी के लिए जाया करते थे,
उन्ही यादो से क्यों मुहं मुड़ने लगता है....
जब इतना करीब आये वो एक दम से,
फिर जन्मो-जन्मो का रिश्ता भी लगने लगता है...
गर्मी, पतझड़ या हो सर्द की ठिठुरती हुयी रात,
हर मौसम एक सा क्यों लगने लगता है....
कोई तो वजह होगी मुझसे दूर जाने की,
वो आये थे कभी मेरी जिन्दगी के किसी मोड़ पर,
"अमरदीप" को वो मोड़ इक सपना लगने लगता है.... 

>>>>अमरदीप<<<<

Monday, July 16, 2012

तू ही बता मै करूँ तो क्या करूँ ....


मेरे अल्लाह,  मेरे मालिक, मेरे वाहेगुरु,

तू ही बता मै करूँ तो क्या करूँ ....
कांटो की राह पर भी  तूने चलना सिखाया,
गिरने पर उठ के संभलना भी तूने बताया...
सूरज की तरह पल- पल जलता रहा मै,
चाँद सा रोशन भी तूने बनाया...
तूने अगर छिना जो तूने ही दिया था,
तूने ही जना और तूने ही दफनाया....

इन्सां हूँ मै, मै तुझसा खुदा नही,
तेरी कायनात का हूँ, मै तुझसे जुदा नही...
खफा है तू ये कैसा समां आया,
तेरी ही ममता का है मुझपे साया...
आगे भी देगा जो तुने दिया था,
तुझको ही हर तरफ मैंने है पाया....
तेरी ही मूरत तेरी ही काया.. 
तू ही बता मै करूँ तो क्या करूँ ....

>>>>अमरदीप<<<<

Saturday, July 14, 2012

दिल तू अब दगा ना देना, अब कोई सजा ना देना...


आसमां में है बादल से छाये,
अँधेरे से जी मेरा घबराये...
गम का भी आया था साया,
जब आंसू आखो तक आया..  
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

जब नीला था आसमां और पक्षी भी थे,
अँधेरे में कुछ नरभक्षी भी थे..
किसी के हिस्से में कोयल की कूक,
किसी के हिस्से तलवार और बन्दूक...
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

जमीं पे उसके पैर नही थे,
किसी  से उसके वैर नही थे...
फिर भी वो सबको खटकता था,
तनहा अकेला भटकता था....
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

हवा संग मुझे उड़ना था,
सागर सा आगे बढ़ना था..
गिरता गया गिरता गया,
फिर भी मुझे उठ चलना था...
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

गैरो ने थे निशाने साधे,
अपनों ने थे रिश्ते बांधे...
दोनों में ज्यादा फर्क ना था,
दुश्मन कौन है ये समझना था....
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

अब आया इक और सवेरा,
अपना बनाया मैंने खुद बसेरा..
ना कोई था अब मेरा अपना,
खुश रहना था मेरा सपना...
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

माँ मेरी कमजोर है अब, 
बाप सा कोई ना और है अब..
फ़र्ज़ मेरा है उन्हें खुशिया देना,
क़र्ज़ उनका मुझपे भुला ना देना...
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

>>>>अमरदीप<<<<

Thursday, July 12, 2012

किसी के लिए बेवफाई ना होती....

हसरते और ख्वाहिशे अगर सबकी पूरी होती,
तो इस कायनात में खुदा की जरुरत  ना होती....
हर कोई मन-चाहे के साथ इश्क करता,
किसी के दिल में किसी के लिए बेवफाई ना होती......

>>>>अमरदीप<<<<

Saturday, July 7, 2012

थोड़ी सी तो वफ़ा होती ????




अगर इस दुनिया में हर मर्ज की दवा होती,
मेरे गुनाहों के लिए भी कोई सजा होती... 
ना तड़पता "अमरदीप" यूँ  पानी बिन मछली की तरह,
उनके दिल में मेरे लिए थोड़ी सी तो वफ़ा होती ???? 


>>>>अमरदीप<<<<

मै कायर बनता गया...


कायरो की इस दुनिया में मै कायर बनता गया...
दिल के ज़ख्मो पर मरहम लगा मै शायर बनता गया ..
ना अब जिंदगी से प्यार रहा, ना मौत से नफरत..
ऐसी जिंदगी जीने के "अमरदीप" लायक बनता गया .......

>>>>अमरदीप<<<<<  

Thursday, July 5, 2012

मै गया इश्क के महकमे में....

मै गया इश्क के महकमे में, 
उसने मुझे ठग्ग लिया... 
कदम पहला ही था इश्क में, 
और पहले ही दिन लुट गया... 
अब ना खाना था  ना पीना था,
जीना भी इक तरह से छुट गया.. 
इश्क विच रो-रो मै कमला होया,
हसना भी अब भूल गया.. 
मै गया इश्क के महकमे में, 
उसने मुझे ठग्ग लिया............

>>>>>अमरदीप<<<<

Tuesday, July 3, 2012

खुदा भी हमारी मोहब्बत में शामिल होता...


अगर मोहब्बत करना इतना आसां होता, 
तो तेरा नाम पूजा और मेरा इबादत होता, 
हर मंदिर में हम फूल समझ कर चढ़ाये जाते,
खुदा भी हमारी मोहब्बत में शामिल होता... 

>>>>अमरदीप<<<<