Thursday, August 30, 2012

जिस पत्थर को अक्सर मैं घूरता रहा, दरअसल वो खुदा था.....


जिस पत्थर को अक्सर मैं घूरता रहा, दरअसल वो खुदा था.....
सभी उनके करीबी थे, मैं ही उनसे जुदा था...
फिर इक दफा उन्होंने दो लोगो को मेरे करीब भेजा,
जिन्होंने मुझे उस खुदा के करीब भेजा...
खुदा का रंग मुझे,  पहले ही दिन नज़र आया..
मुड कर जिधर भी देखा, उसी का था साया..
ढूंढा जिधर उस खुदा को, हर जहग उसे पाया...
ना एक सूरत थी उसकी, नाही एक थी काया..
धुप भी उसकी की थी, वही देता रहा छाया..
ना कोई समझ सका अब तक, कैसी है उसकी माया...
इतना समझ सका हूँ की , वो ही मुझे जग में  लाया...

>>>>अमरदीप<<<<

जिन्दा रख दिल को अपने, तेरी याद को जिन्दा रखूँगा...



मैं आग था, आग हूँ और आग ही रहूँगा,
तू मेरी हकीकत है और मैं इत्तेफाक ही रहूँगा,
ना डरुंगा, ना लडूंगा और ना मरुंगा तेरी खातिर,
जिन्दा रख दिल को अपने, तेरी याद को जिन्दा रखूँगा,
मैं तनहा था, तनहा हूँ और तनहा ही रहूँगा,
तू थाम ले हाथ ये कभी ना मैं कहूँगा, 
तू चाँद था, चाँद है और चाँद ही रहेगा,
जमीं हूँ मै ये याद रख तुझ तक ना पहुँचूंगा,
तू फूल था, फूल है और फूल ही रहेगा,
जड़ो में ना तेरी मै, ना शाख भी बनूँगा.. 
तू प्यार था, प्यार है और प्यार ही रहेगा,
मिले ना मुझे अब, तो कभी ना मै जनूँगा(जन्मुंगा).. 

>>>>अमरदीप सिंह<<<<