Wednesday, November 18, 2015

है नही अब मुझमें इतनी हसरत कि खुद को किसी के काबिल बना दे...



है नही अब मुझमें इतनी हिम्मत कि फिर से अपने दिल में किसी को जगह दे,
है नही अब मुझमें इतनी हसरत कि खुद को किसी के काबिल बना दे।
एक ही दुआ मांगी थी रब से कि उनको मेरा बना दे,
हसर हुआ ऐसा कि कोई मुझे पल के लिए भी ना पनाह दे।
पूछ लिया मैंने अपने रब से कहीं तो मुझको जगह दे,
कह दिया रब ने, जन्नत या जहन्नुम जाने की तू कोई तो मुझको वजह दे।।

{ अमरदीप सिंह }

Tuesday, November 17, 2015

हम भी जज्बातों में बह गए होंगे....


माना किसी के जज्बातों के साथ खेलना उनका पेशा रहा होगा,
हम भी जज्बातों में बह गए होंगे।
दिल में अपने उन्हें जगा देकर,
हम खुद दिल तक उनके ना पहुंचे होंगे।
प्यार वो भी हमसे करते है ऐसा झूठ ही कहा था उन्होंने,
उस झूठ को ही सही कभी तो वो याद किया करते होंगे।
आज वो खुश है किसी के साथ अपनी दुनिया में,
हम भी खुश होंगे अपनी दुनिया में ऐसा वो सोचा करते होंगे।।

{ अमरदीप सिंह }

Tuesday, October 20, 2015

बत्तमीज हूँ, बेरूखा हूँ, कड़वीं बातें करता हूँ अक्सर...


कटती नहीं जो जिन्दगी यूँ आसानी से,
उसे जीने की कोशिश करता हूँ। 
जीता हूँ जिनके साथ अपनी मनमानी से,
उनकी ख्वाहिशे पूरी करने की कोशिश करता हूँ। 
बत्तमीज हूँ, बेरूखा हूँ, कड़वीं बातें करता हूँ अक्सर,
दुनिया जो सुनना पसंद नही करती, वो सच बोलने की कोशिश करता हूँ।।

{ अमरदीप सिंह }

Monday, October 12, 2015

देख कर चोट का निशां उनके होठों पर...


देख कर चोट का निशां उनके होठों पर, आज ये एहसास हुआ कि..
कांटो में खिला वो ख़ूबसूरत गुलाब कितने दर्द झेलता होगा।।

{ अमरदीप सिंह }

Friday, October 9, 2015

इजहार करना भी मुश्किल हो जाता है....


ना सुनने के डर से इजहार करना भी मुश्किल हो जाता है,
पास हो वो चाहे जिसे दिल, प्यार करना मुश्किल हो जाता है।
दिल धड़कता है जोर जोर से करीब उनके जाने से, 
इजहार करके कहीं दूर ना चले जाए वो, ये सोच कर सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है।।

{ अमरदीप }

ए ज़िंदगी मुझसे यूँ दगा ना कर....



ए ज़िंदगी मुझसे यूँ दगा ना कर,
मैं जिन्दा रहूँ हमेशा ये दुआ ना कर। 
कोई देखता है उन्हें तो जलन होती है मुझको,
ए हवा तू भी उन्हें ज्यादा छुआ ना कर।

{ अमरदीप }

Wednesday, September 23, 2015

मैं वो परिंदा जो अब उड़ना चाहता हूँ...


मैं वो परिंदा जो अब उड़ना चाहता हूँ,
वापिस ना अपने घर कभी मुड़ना चाहता हूँ।
हार चूका, थक चूका अब टूट गया हूँ,
है नहीं अब कोई अपना, सबसे छूट गया हूँ।
किया जिनके लिए उन्होंने मुझे नाकारा समझा,
जीने चला जिसके संग, उसने ही आवारा समझा।
नहीं है चाह अब जिंदगी में कुछ करने की,
किसे है परवाह इस दुनिया अब जीने मरने की।

मैं वो परिंदा जो अब उड़ना चाहता हूँ,
वापिस ना अपने घर मुड़ना चाहता हूँ।।

पल पल हर पल अब कटने लगा हूँ,
जिंदगी की सच्चाई से भटकने लगा हूँ। 
उम्मीद की जिस जिस से सिर्फ प्यार की,
उन सब को हर वक़्त अब मैं खटकने लगा हूँ।
पहले दोस्तों की फिर अपनों की फिर उनकी नज़रों से गिरा,
आज मुकाम वो आया की खुद की नज़रों से गिरने लगा हूँ। 
मैं वो परिंदा जो अब उड़ना चाहता हूँ,
वापिस ना अपने घर मुड़ना चाहता हूँ।।

{अमरदीप सिंह }