Wednesday, November 17, 2010
मुदद्तों बाद मुलाकात हुयी है....
क्या माहताब क्या गुलाब मुदद्तों बाद मुलाकात हुयी है.
ख्वाबों की कैदगाह का सख्त कफस टूटा हो जैसे आज,
मिला हिसाब को हिसाब हुआ धोखा रंगीन हयात हुयी है.
ए दरिया तेरा शुक्रिया देखी तुझमें आज सूरत है अपनी,
घाटी में हरियाली रंग पर कहा मौजों की शुरुआत हुयी है.
अब तो पत्थर से भी बदतर हो गया नाज़ुक सा दिल,
बिता जो मुझ पे बिता दर्द की भी क्या कोई जात हुयी है.
आदतों में बदल चूका हूँ, पहले सा अब रहा कहाँ हूँ,
मात ही मात हुयी है कब्रों से भला किसकी बात हुयी है.
सहर ने बताया मुझे आज रोज़ कुछ तो होगा ख़ास,
वक्त पे तो वो काम ना आया फिर वही बेदर्द रात हुयी है.
Saturday, October 30, 2010
Tuesday, October 26, 2010
ਅੱਖਾ ਰੋਣ ਲਗਿਯਾ ਨੇ
आ के प्यार दे कोई
बस मुहब्बत की मुझे ज़रूरत है
बेइंतहाँ आ के प्यार दे कोई
फिर दिल से रूख़सती को न कहना
चाहे सीने में खंज़र उतार दे कोई
माना तन्हा सही पर आज भी मैं जिंदा हूँ
आ के करीने से मुझको सँवार दे कोई
मेरे दिल की ज़मीं में आज भी गुलाब पलते हैं
खिलेगें, शर्त पहले प्यार की फुहार दे कोई
दिलों से खेलने को तूने अपना शौक़ कहा था
हैं दुआ ईश्क़ में तुझको करारी हार दे कोई
सिवाय बेवफ़ाई उम्र भर तूने दिया क्या
क्यों तेरी याद में जीवन गुज़ार दे कोई
मुझसे ज़्यादा भी कोई और तुम्हें चाहता है
ख़ुदा ये सुनने से पहले ही मार दे कोई
बहकेगें क़दम तेरे, संभालेगा मेरा कंधा
कहोगी उस दिन कि मुझ-सा यार दे कोई
उन्होंने अब तलक मुझको कभी क़ाबिल नहीं समझा
मेरे कंधों का उनको इक दिन आधा तो भार दे कोई
अनजाने में कई काम अधूरे छूटे
आज एक ज़िंदगी उधार दे कोई
है ख़्वाहिश आख़िरी साँस मेरी अटकी हो हलक़ में
वो मुझको चाहती थी ला के ऐसा तार दे कोई
Saturday, October 23, 2010
भ्रूण हत्या की मज़बूरी

उसकी आवाज का दमन का सिलसिला घर से शुरू होता है समाज में पहुँचता है और एक दिन घर में दम तौड़ देता है ये तो सब ही जानते है मगर वक़्त बदला घर परिवार, समाज में औरतों की स्थिति बदली लोगो ने कहा स्त्री को वो हक सम्मान मिलना चाहिए जिसकी वो हकदार है कुछ लोगो ने औरतों की आगे की सुध ली और बहस का मुद्दा बना दिया औरतों को पुरुषों के बराबर खड़ा कर के हर तरफ इसी विषय की जंग छिड़ी है औरत भी पुरुषों के बराबर है उसके भी वो ही अधिकार है ठीक है हम को अधिकार मिले ठीक है हम पुरुषों से कंधे से कन्धा मिला कर चल रहे है मगर क्या हम को सही में जो अधिकार मिलने चाहिए थे मिल गए है क्या सच में हम पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रहे है … जवाब हाँ है??? न है??? या क्न्फुयजन है की वास्तव में एक औरत की स्थिति क्या है कहीं तो आजादी के नाम पर लड़कियां को बेहयाई दे दी गयी है तो कहीं पर उसको पुरुषो के सामान बनाने में उसकी स्त्री स्वरूप कोमलता को मार दिया जा रहा है लड़कियां आज भी उसी आदमी की मानसिकता के अनुसार ही चल रही है उसकी अपनी एक सोच अपने आप का निर्माण उसको खुद करने दो न क्यूँ उसकी सोच को प्रभावित किया जा रहा है लड़कियां पहले भी पुरुषों के लिए निचले दर्जे की थी और आज भी है उसका खुद का अस्तित्व पुरुषो पर निर्भर करता था करता है एक औरत का शोषण घर से शुरू हुआ और प्लेग की तरह सारे समाज में फैल गया किसी ने इस का विरुद्ध ही नहीं किया अब विरुद्ध करो तो खून में रच गयी आदत बोलने से तो जाने से रही एक औरत ने जन्म से ही संघर्ष शुरू कर दिए हों और वो संघर्ष मौत तक साथ रहे वो औरत कैसे चाह सकती है की उसकी कोख से फिर न खत्म होने वाला संघर्ष शुरू हो वो डरती है की जब पहली बार उसे किसी पराये के छूने का मतलब पता हुआ था वो मेरी बच्ची के साथ न हो वो डरती है जो चचेरा या ममेरा भाई मुझे अकेले मे देखते ही घिनौने रूप में आ जाता है वो मेरी बच्ची न देखे जब पहली बार वो बच्ची से नवयोवना हुई उस वक़्त सब पडोसी अंकल की दृष्टि इतनी चुभने वाली हो गयी थी घर से निकलने में शर्म नहीं वो पल मरने जैसा होता था तो क्यूँ वो पल पल का मरना वो सहे जब पब्लिक ट्रांसपोट से सफर शुरू हुआ तो हर पल खुद को न जाने कितने तह में छुपाने का दिल किया किसी ऐसे वीराने में जाने का दिल हुआ जहाँ कोई पुरुष न हो उसकी छाया न हो फिर कैसे अपनी कोख से फिर से उस डर को पैदा करूँ ,
कहते है पति का घर ही अपना होता है जहाँ से बस उठेगी तो उसकी अर्थी मगर यहाँ भी संघर्ष शुरू सभ्यता संस्कार आदर अपनापन मिठाश ये सब औरत के लिए ही बनाये गए है इन बातों से पुरुष का कोई लेना देना नही ऊँचा मत बोलो सभ्य दिखो संस्कार ऐसे की गलत बात पर भी चुप रहो आदर ऐसा की अपमान का घूंट पी कर भी इज्ज़त करो ये जिल्लत सहो और सहते रहो जब तक की अर्थी उठती नहीं इस घर से “घर से बहार ऐसे देवर से मिलो जो भाभी तो कहेंगे मगर नियत साफ बता देगी की वो चाहता क्या है” ऐसी दुनियां में उस को ला कर फिर से वही सब या उससे भी भयानक देखने के लिए कैसे छोड़ दे
आज समझी हू क्यूँ जब घर पहुँचने में देर होने में माँ मुझे चिंतित मिलती थी क्यूँ वो इतनी नसीहते देती थी वो तो डर डर के जीती रही और भी न जाने कितनी माये डर से समझोता करती है मगर जो माँ अपने डर पे काबू नहीं कर पाती वो ऐसा कदम उठती है मैं उसको कमजोर नहीं कहूँगी न ही पापन पता नहीं उसने इतना सब सहा है या उससे ज्यादा ये तो वो ही जान सकती है मगर मैं सोचती हूँ हम को जो आजादी दी जा रही है उस आजादी में हम को उन पुरुषों से सुरक्षा भी मिल जाये सुरक्षा इस बात की नहीं की एक पुरुष द्वारा दुसरे पुरुष से बचाया जाये सुरक्षा इस बात की की वो अपनी नियत अपना नजरिया अपनी सोच बदले हम को बराबरी का नहीं सम्मान का अधिकार दे दो हमको कंधे से कन्धा मिला कर नहीं हम को अपने ऊँचाइयों को अपने आप छूने दे दो हम को आप से नजरों की सुरक्षा चाहिए जिसमे हम को लड़की होने पर मरने जैसा न अनुभव करना पड़े हमको अपनी बातों से सुरक्षा दे दो जहाँ बहन का मतलब बहन हो जहाँ भाभी का मतलब भाभी हो जहाँ माँ का मतलब माँ हो, हम को सम्मान की सुरक्षा दे दो जहाँ हम बसों में सडको में घर के बहार कहीं भी अपने लड़की होने पर अपमान न महसूस हो ऐसी सुरक्षा दे दो अगर हम लड़कियों को ये सम्मान ये सुरक्षा समाज के हर शख्स हर अपने परायों से मिल जाएगी तब कोई भी लड़की का यूँ हत्या नहीं की जाएगी न किसी माँ को डर के साये में जीना होगा ना फिर कभी किसी के कोख में किसी कन्या की हत्या की जाएगी और न इस विषय में कुछ लिखा जायेगा न पढ़ा जायेगा ..
जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलते तब तक लड़कियां समाज में ही नहीं माँ की कोख में भी सुरक्षित नहीं रहेगी.................
Sunday, October 10, 2010
कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है.......
अमरदीप सिंह
Friday, October 8, 2010
सवाल ज़िन्दगी के........
पन्नों में जल रहे थे कुछ साल ज़िन्दगी के ,
धुआँ धुआँ से हो गये कई ख्याल ज़िन्दगी के ।
एक तेरी याद है बस जो दिल बेहलाती है ,
वरना सताते हैं हमे कई सवाल ज़िन्दगी के ।
वफ़ा मोहब्बत में ,दोस्ती में बेवफ़ाई ,
होते है कई तजूर्बें बेमिसाल ज़िन्दगी के ।
हंसते चेहरे जलते पावं , नदियाँ चिडियाँ गावं ,
हर पल नजर आते हैं कमाल ज़िन्दगी के ।
शाम से सुबह ,सुबह से रात का सफ़र ,
मालिक हैं हम ऎसी बेहाल ज़िन्दगी के ।
Saturday, October 2, 2010
तेजी से गायकी की बुलंदियों को छूने वाले पंजाबी गायक सतिंदर सरताज ने आखिर ली चैन की सांस...
कहा जाता है की किसी शायर या कवी की रचित पंक्तियों में उसके दिल और दिमाग के अलावा उसकी रूह भी शामिल होती है। उनके द्वारा रचित पंक्तियों में उनकी जान का कुछ हिस्सा होता है और अगर कोई उनकी रचित गज़लों से या कविताओ से खिलवाड़ करे या उसका मजाक उडाये तो वह उनकी रूह को ठेस पहुँचाने के बराबर या कुछ उससे भी ज्यादा होता है।


अमरदीप सिंह
Monday, August 23, 2010
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं...
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ।
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा ।
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा ।
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं ।
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ।
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा ।
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा ।
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं ।
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ।
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है ।
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है ।
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं ।
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .............
Friday, August 20, 2010
गुरु नानक देव जी के पद ........

जैसे तरुवर फल बिन हीना तैसे प्राणी हरि नाम बिना।
काम क्रोध मद लोभ बिहाई, माया त्यागो अब संत जना।
नानक के भजन संग्रह से यह पद उद्धृत है।
झूठी देखी प्रीतजगत में झूठी देखी प्रीत।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
नानक के भजन संग्रह से यह पद उद्धृत है।
को काहू को भाईहरि बिनु तेरो को न सहाई।
काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥
धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
नानक के भजन संग्रह से उद्धृत है।
जय सांई राम~~~
Tuesday, June 29, 2010
अपने ही वतन में श्रधालुओ का धार्मिक स्थलों पर जाना दुर्लभ ......

भक्तो का अपने भोले नाथ भगवान् शिव शंकर के साक्षात दर्शन करने का एक मुख्य जरिया है.... कैलाश पर्वत के बाद अमरनाथ दूसरा ऐसा स्थान है जहा भगवान् शिव शंकर माँ पारवती के साथ साक्षात विराजमान है ... अपने भगवान् के साक्षात दर्शन पा कर अपना मानव जीवन धन्य बनाने के लिए करोडो श्रद्धालु हर वर्ष इस यात्रा के शुरू होने का बेसब्री से इंतज़ार करते है... और इस यात्रा के आरम्भ होते ही लोग अपने सभी काम काज छोड़ कर प्रभु के भागती में लीन हो कर श्री अमरनाथ यात्रा को चल पड़ते है....... इस यात्रा को जाने के लिए श्रद्धालु द्वारा एक फार्म भर के यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन करवानी पड़ती है.... और फिर रजिस्ट्रेशन होते ही श्रद्धालु अपने प्रभु के दर्शनों को चल पड़ते है......
पर अब माहौल कुछ इस प्रकार से हो गया है की यात्रा की रजिस्ट्रेशन के लिए जो फार्म पहले इन्टरनेट के जरिये लोग भर देते थे या बैंक से लेकर अपनी रजिस्ट्रेशन करवा लेते थे... पर अब सरकार द्वारा खोले गये रजिस्ट्रेशन केन्द्रों पर इन्टरनेट के माध्यम से भरे जा रहे फारम को नहीं लिया जा रहा और ना ही उनके द्वारा कोई और फारम लोगो तक पहुच रहे है... किसी प्रकार से ये फार्म लोगो को मिल रहा है और लोग अपनी रजिस्ट्रेशन करवा के यात्रा को जाते है और किसी कारण वश वहा देरी से पहुचते है तो इतनी कठिनाईयों का सामना करने के बावजूद वहा उन्हें इनती दूर पहुचने पर प्रभु के दर्शन नहीं करने दिए जा रहे.....जिस तारीख की रजिस्ट्रेशन है उसी दिन ही यात्रा संभव होगी......

अपने मुल्क में हो कर भी इस यात्रा के लिए इतनी मशक्कत है उसके बावजूद भी यात्रा संभव ना हो तो कौन कहेगा की हम आजाद भारतवर्ष के नागरिक है??? कौन कहेगा मेरा भारत महान है???? क्या ये शब्द सिर्फ किताबो में ही छापने के लिए रह गयी है??? क्या आवाम इसी तरह से सोता रहेगा???? क्या कोई इसके विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठाएगा????
Saturday, June 26, 2010
सच्चे प्यार का कभी भी इम्तहान नहीं लेना चाहिए

Wednesday, June 16, 2010
True Voice of Heart

