कांच की बोतल में बंद तकदीर मेरी, हर पल मुझे मेरी औकात याद कराती है। मैं जितना भी मजबूर हो जाऊं दिल से अपने, फिर भी दिल पे ही हर बात आ जाती है। सिर्फ प्यार के दो बोल की खातिर किसी पर सब कुछ लुटा दूं, लुट कर भी प्यार की ही तलब फिर से लग जाती है। फिर वही उस कांच की बोतल में, मेरी तकदीर आकर बंद हो जाती है। {अमरदीप सिंह}
तमाम कोशिशें नाकाम हो जाती हैं, जिन्दगी जब किसी मुकाम पर बदनाम हो जाती है। ठोकरें लगने लगती है हर पल हर मोड़ पर, चोट लगने की बात दिल पर आम हो जाती है। अक्सर दिल अपना समझ भरोसा कर बैठता है जरूरत से ज्यादा किसी पर, फिर सारा भरोसा सारी आस एक पल में बेनाम हो जाती है। मौत को गले लगा भला किसी को आज तक सकून मिला नहीं यह सब जानते हैं, फिर भी रास्ता मौत का चुनते है क्यों कि मौत सस्ते दाम मिल जाती है। >>>अमरदीप सिंह<<<