Friday, August 20, 2010

गुरु नानक देव जी के पद ........


हरि नाम बिनातू सिमिरन कर ले मेरे मना तेरी बीती उमर हरि नाम बिना।
जैसे तरुवर फल बिन हीना तैसे प्राणी हरि नाम बिना।
काम क्रोध मद लोभ बिहाई, माया त्यागो अब संत जना।
नानक के भजन संग्रह से यह पद उद्धृत है।
झूठी देखी प्रीतजगत में झूठी देखी प्रीत।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
नानक के भजन संग्रह से यह पद उद्धृत है।
को काहू को भाईहरि बिनु तेरो को न सहाई।
काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥
धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
नानक के भजन संग्रह से उद्धृत है।

जय सांई राम~~~

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