Friday, November 2, 2012

खुदा ही गवाह था मेरे ज़ख़्मी दिल का.....


ना अब तक पता था उन्हें मेरे हाल-ए-दिल का ,
खुदा ही गवाह था मेरे ज़ख़्मी दिल का.....
ना गौर से देखा कभी उन्होंने मेरी तनहाई को,
मै ही चल पड़ा था थाम के उनकी परछाई को....
इक जोत जगाई थी फिर से मैंने अपने दिल में,
पता ना था, हम भी शामिल थे उनके कातिल में....





                                                     >>>>अमरदीप<<<< 

No comments:

Post a Comment