Saturday, July 14, 2012

दिल तू अब दगा ना देना, अब कोई सजा ना देना...


आसमां में है बादल से छाये,
अँधेरे से जी मेरा घबराये...
गम का भी आया था साया,
जब आंसू आखो तक आया..  
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

जब नीला था आसमां और पक्षी भी थे,
अँधेरे में कुछ नरभक्षी भी थे..
किसी के हिस्से में कोयल की कूक,
किसी के हिस्से तलवार और बन्दूक...
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

जमीं पे उसके पैर नही थे,
किसी  से उसके वैर नही थे...
फिर भी वो सबको खटकता था,
तनहा अकेला भटकता था....
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

हवा संग मुझे उड़ना था,
सागर सा आगे बढ़ना था..
गिरता गया गिरता गया,
फिर भी मुझे उठ चलना था...
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

गैरो ने थे निशाने साधे,
अपनों ने थे रिश्ते बांधे...
दोनों में ज्यादा फर्क ना था,
दुश्मन कौन है ये समझना था....
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

अब आया इक और सवेरा,
अपना बनाया मैंने खुद बसेरा..
ना कोई था अब मेरा अपना,
खुश रहना था मेरा सपना...
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

माँ मेरी कमजोर है अब, 
बाप सा कोई ना और है अब..
फ़र्ज़ मेरा है उन्हें खुशिया देना,
क़र्ज़ उनका मुझपे भुला ना देना...
दिल तू अब दगा ना देना,
अब कोई सजा ना देना...

>>>>अमरदीप<<<<

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