मेरा नसीब भी तब किसी काम ना आया,
जब कुछ कर दिखाने के मुकाम पे मै आया..
खुदा से मांगता था जो मै अक्सर,
जवाब में कभी कोई पैगाम ना आया...
देखता तो वो भी था कही से मुझे,
मेरी बदनसीबी का वो तोहफा भी बेनाम आया..
ऐ खुदा, तुही बता दे मुझे क्या करू मै,
क्या मेरा हशर, क्या मेरा अंजाम है आया....
>>>>अमरदीप<<<<
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