इक रोज़ सुबह उठा तो, सोचने लगा मै की आज कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है,
फिर दिन गुज़रा, रात हुयी तो सोचने लगा मै की कल कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है,
फिर दिन गुज़रे, और महीने तो सोचने लगा मै की कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है,
जिंदगी यही है समझ आ गया मुझे की "कौन सा नया ज़ख़्म मिलने वाला है,"
अमरदीप सिंह
अमरदीप सिंह
dhanywaad.....
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