Saturday, October 23, 2010

भ्रूण हत्या की मज़बूरी

कन्या भ्रूण हत्या के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है और सुना है . मेरी राय भी ऐसी ही थी इस बारे में पढ़ कर बातें कर के जो एक बात सामने आती है या जिसका हम निष्कर्ष निकलते है वो ये की कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोग ही ऐसा घिनौना कृत्य कर रहे है जो सिर्फ वंश वृद्धि का सोचते है लड़के की चाह रखते है …मगर ऐसा नहीं है ये सोच सिर्फ लड़के की चाह या वंश वृद्धि तक की बात नहीं बात की हकीकत कुछ और है दुःख लड़की पैदा होने का नहीं है सवाल वंश का भी नहीं… दुःख उस बात का है जो एक औरत किसी से कह नहीं पाती वो अपने जख्म किसी को दिखा नहीं पाती अत्याचार तो औरतों पर शुरू से हुए है कहीं इसका विरुद्ध हुआ कहीं आवाज का दमन ये सब वो सह लेती है नियति का लिखा सोच कर
उसकी आवाज का दमन का सिलसिला घर से शुरू होता है समाज में पहुँचता है और एक दिन घर में दम तौड़ देता है ये तो सब ही जानते है मगर वक़्त बदला घर परिवार, समाज में औरतों की स्थिति बदली लोगो ने कहा स्त्री को वो हक सम्मान मिलना चाहिए जिसकी वो हकदार है कुछ लोगो ने औरतों की आगे की सुध ली और बहस का मुद्दा बना दिया औरतों को पुरुषों के बराबर खड़ा कर के हर तरफ इसी विषय की जंग छिड़ी है औरत भी पुरुषों के बराबर है उसके भी वो ही अधिकार है ठीक है हम को अधिकार मिले ठीक है हम पुरुषों से कंधे से कन्धा मिला कर चल रहे है मगर क्या हम को सही में जो अधिकार मिलने चाहिए थे मिल गए है क्या सच में हम पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रहे है … जवाब हाँ है??? न है??? या क्न्फुयजन है की वास्तव में एक औरत की स्थिति क्या है कहीं तो आजादी के नाम पर लड़कियां को बेहयाई दे दी गयी है तो कहीं पर उसको पुरुषो के सामान बनाने में उसकी स्त्री स्वरूप कोमलता को मार दिया जा रहा है लड़कियां आज भी उसी आदमी की मानसिकता के अनुसार ही चल रही है उसकी अपनी एक सोच अपने आप का निर्माण उसको खुद करने दो न क्यूँ उसकी सोच को प्रभावित किया जा रहा है लड़कियां पहले भी पुरुषों के लिए निचले दर्जे की थी और आज भी है उसका खुद का अस्तित्व पुरुषो पर निर्भर करता था करता है एक औरत का शोषण घर से शुरू हुआ और प्लेग की तरह सारे समाज में फैल गया किसी ने इस का विरुद्ध ही नहीं किया अब विरुद्ध करो तो खून में रच गयी आदत बोलने से तो जाने से रही एक औरत ने जन्म से ही संघर्ष शुरू कर दिए हों और वो संघर्ष मौत तक साथ रहे वो औरत कैसे चाह सकती है की उसकी कोख से फिर न खत्म होने वाला संघर्ष शुरू हो वो डरती है की जब पहली बार उसे किसी पराये के छूने का मतलब पता हुआ था वो मेरी बच्ची के साथ न हो वो डरती है जो चचेरा या ममेरा भाई मुझे अकेले मे देखते ही घिनौने रूप में आ जाता है वो मेरी बच्ची न देखे जब पहली बार वो बच्ची से नवयोवना हुई उस वक़्त सब पडोसी अंकल की दृष्टि इतनी चुभने वाली हो गयी थी घर से निकलने में शर्म नहीं वो पल मरने जैसा होता था तो क्यूँ वो पल पल का मरना वो सहे जब पब्लिक ट्रांसपोट से सफर शुरू हुआ तो हर पल खुद को न जाने कितने तह में छुपाने का दिल किया किसी ऐसे वीराने में जाने का दिल हुआ जहाँ कोई पुरुष न हो उसकी छाया न हो फिर कैसे अपनी कोख से फिर से उस डर को पैदा करूँ ,
कहते है पति का घर ही अपना होता है जहाँ से बस उठेगी तो उसकी अर्थी मगर यहाँ भी संघर्ष शुरू सभ्यता संस्कार आदर अपनापन मिठाश ये सब औरत के लिए ही बनाये गए है इन बातों से पुरुष का कोई लेना देना नही ऊँचा मत बोलो सभ्य दिखो संस्कार ऐसे की गलत बात पर भी चुप रहो आदर ऐसा की अपमान का घूंट पी कर भी इज्ज़त करो ये जिल्लत सहो और सहते रहो जब तक की अर्थी उठती नहीं इस घर से “घर से बहार ऐसे देवर से मिलो जो भाभी तो कहेंगे मगर नियत साफ बता देगी की वो चाहता क्या है” ऐसी दुनियां में उस को ला कर फिर से वही सब या उससे भी भयानक देखने के लिए कैसे छोड़ दे
आज समझी हू क्यूँ जब घर पहुँचने में देर होने में माँ मुझे चिंतित मिलती थी क्यूँ वो इतनी नसीहते देती थी वो तो डर डर के जीती रही और भी न जाने कितनी माये डर से समझोता करती है मगर जो माँ अपने डर पे काबू नहीं कर पाती वो ऐसा कदम उठती है मैं उसको कमजोर नहीं कहूँगी न ही पापन पता नहीं उसने इतना सब सहा है या उससे ज्यादा ये तो वो ही जान सकती है मगर मैं सोचती हूँ हम को जो आजादी दी जा रही है उस आजादी में हम को उन पुरुषों से सुरक्षा भी मिल जाये सुरक्षा इस बात की नहीं की एक पुरुष द्वारा दुसरे पुरुष से बचाया जाये सुरक्षा इस बात की की वो अपनी नियत अपना नजरिया अपनी सोच बदले हम को बराबरी का नहीं सम्मान का अधिकार दे दो हमको कंधे से कन्धा मिला कर नहीं हम को अपने ऊँचाइयों को अपने आप छूने दे दो हम को आप से नजरों की सुरक्षा चाहिए जिसमे हम को लड़की होने पर मरने जैसा न अनुभव करना पड़े हमको अपनी बातों से सुरक्षा दे दो जहाँ बहन का मतलब बहन हो जहाँ भाभी का मतलब भाभी हो जहाँ माँ का मतलब माँ हो, हम को सम्मान की सुरक्षा दे दो जहाँ हम बसों में सडको में घर के बहार कहीं भी अपने लड़की होने पर अपमान न महसूस हो ऐसी सुरक्षा दे दो अगर हम लड़कियों को ये सम्मान ये सुरक्षा समाज के हर शख्स हर अपने परायों से मिल जाएगी तब कोई भी लड़की का यूँ हत्या नहीं की जाएगी न किसी माँ को डर के साये में जीना होगा ना फिर कभी किसी के कोख में किसी कन्या की हत्या की जाएगी और न इस विषय में कुछ लिखा जायेगा न पढ़ा जायेगा ..
जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलते तब तक लड़कियां समाज में ही नहीं माँ की कोख में भी सुरक्षित नहीं रहेगी.................

11 comments:

  1. आप ने सही लिखा है |

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  2. need of time, true revelations

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  3. जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलते तब तक लड़कियां समाज में ही नहीं माँ की कोख में भी सुरक्षित नहीं रहेगी.................

    sahi kaha apne......par iska ilaaz kaise hga samaaj ko kaun sudharega...ma ahi jab bachchi ko janam nahi lene degi to phri aage chal kar kya hona hai ye sab jante hai aaj bhi sthiti badtar hai ek din bas purusho ke samaaj me purso ka hi raj hoga tab kya hoga ..aur jo kuch betiya hongi unk akya hoga hashra ye bhi sopchne wali bat hai.

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  4. Aap sabhi ko tah-e-dil se sukriya....

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  5. bhaai amardeep, aapne ek bahut hi sahi muddde par likha hai...
    mujhe to yah hairat ho rahi hai ki aapne june se blogging shuru ki hai aur aaj ise aap chitthajagat se jod rahe hain, khair koi bat nai ji, der aaye durust aaye....

    lakh lakh, shubhkamnayein praji....

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  6. sakhi ji, vriksh agar apni jado ko bhul jaye to, wo jyada der tak tik nahi sakta, usi taraf wo purush bewakoof hai, jo bhul jate hai ki unko janm dene wali bhi koi istri thi, aur jiske saath usne vivaah kiya hai wo bhi istri hai, uski kalayi par jo rakhi baandhti hai wo bhi istri hai, agar wo apni ladki ko maa ki kokh me bhi maar dete hai to, koi unse puchhe ki agla janm kya wo kisi purush ki kokh se lenge?

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  7. sanjeet ji, is mudde ko to hum tab se utha rahe hai jab se thoda kalam thamna sikha hai.. par koi us pe aml kare to na...

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  8. Thank u so much Surendra Singh ji..........

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  9. इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  10. शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

    एक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!

    -लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
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