Tuesday, October 26, 2010

आ के प्यार दे कोई

बस मुहब्बत की मुझे ज़रूरत है
बेइंतहाँ आ के प्यार दे कोई

फिर दिल से रूख़सती को न कहना
चाहे सीने में खंज़र उतार दे कोई

माना तन्हा सही पर आज भी मैं जिंदा हूँ
आ के करीने से मुझको सँवार दे कोई

मेरे दिल की ज़मीं में आज भी गुलाब पलते हैं
खिलेगें, शर्त पहले प्यार की फुहार दे कोई

दिलों से खेलने को तूने अपना शौक़ कहा था
हैं दुआ ईश्क़ में तुझको करारी हार दे कोई

सिवाय बेवफ़ाई उम्र भर तूने दिया क्या
क्यों तेरी याद में जीवन गुज़ार दे कोई

मुझसे ज़्यादा भी कोई और तुम्हें चाहता है
ख़ुदा ये सुनने से पहले ही मार दे कोई

बहकेगें क़दम तेरे, संभालेगा मेरा कंधा
कहोगी उस दिन कि मुझ-सा यार दे कोई

उन्होंने अब तलक मुझको कभी क़ाबिल नहीं समझा
मेरे कंधों का उनको इक दिन आधा तो भार दे कोई

अनजाने में कई काम अधूरे छूटे
आज एक ज़िंदगी उधार दे कोई

है ख़्वाहिश आख़िरी साँस मेरी अटकी हो हलक़ में
वो मुझको चाहती थी ला के ऐसा तार दे कोई

2 comments:

  1. aapka saath raha to bas aisa hi likhte jayenge,,, warna apni ye baate kise hum sunayenge.....

    ReplyDelete