जुबां पर नाम आया जो खुदा के नाम से पहले,
हर जगह बदनाम पाया मुझे उनके अंजाम से पहले..
जिस शराब को कभी छुआ भी नही था इन कमबख्त हाथों ने,
दो चार बाटली यु ही, पी जाते है दोस्त के एक जाम से पहले..
सारा दिन ये आँखे उनकी जुदाई के नशे में रहती है,
फिर शराब भी आंसू बन कर बहती है हर शाम से पहले..
पहले अपनों ने, फिर उन्होंने खेला इस नाजुक दिल से,
अब तो दोस्त भी ना पूछते हमे, किसी काम से पहले..
जन्नत या जहन्नुम को तक़दीर बना लू अब बस,
नही खोना चाहता खुद को रास्ता-ए-गुमनाम (गुमनाम रास्तो में) से पहले..
>>>>अमरदीप<<<<
No comments:
Post a Comment