Saturday, September 8, 2012

अब मैं ही तेरी उन आँखों में खटकता रहा हूँ.....


तेरे हर ज़ख़्म पर मैं मरहम बन लगता रहा हूँ, 
सर्द की हर रात में तेरे लिए सुलगता रहा हूँ...
यकीन कर मुझ पर गुनाहगार नही हूँ मैं तेरा,
खुद को बेक़सूर बताने को अब तक भटकता रहा हूँ...
याद कर वो लम्हे जब तेरी आँखे मेरा राह तकती थी, 
अब मैं ही तेरी उन आँखों में खटकता रहा हूँ...
फिर भी गर ना माने तेरा दिल जो मेरा कभी बसेरा था,
मौत दे मुझे, अगर उस दिल में अब मैं काँटा बन पनपता रहा हूँ.....   


>>>>अमरदीप<<<< 

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